"कठोपनिषद और गीता के माध्यम से मृत्यु, आत्मा, और पुनर्जन्म के गूढ़ रहस्यों को समझना।"
"क्या आपने कभी सोचा है कि मृत्यु के बाद हमारी आत्मा कहां जाती है? क्या यह अंत है, या एक नई यात्रा की शुरुआत? आज हम कठोपनिषद की शिक्षाओं और गीता की दृष्टि से इन सवालों के जवाब तलाशेंगे।"
कठोपनिषद में नचिकेता यमराज से पूछ्ते हैं कि मरने के बाद मनुष्य की गति क्या होती है, तब यमराज कहते हैं कि - हे नचिकेता! अपने अपने कर्मों के अनुसार जैसा जिसका भाव होता है,वह उसी के अनुसार अन्य शरीर को धारण करता है। इसलिए गीता में कहा गया है कि, मनुष्य की आत्म सत्ता आप ही अपनी मित्र और अपनी शत्रु होती है। एक बार मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, यह सोचकर राजा जनश्रुति महामुनि रैक्य के पास पहुँचे और कहा कि क्या मेरी चेतना जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति पा सकती है। महामुनि रैक्य ने बताया है कि राजन जीवित अवस्था में कर्मेन्द्रियां और ज्ञानेन्द्रियां मन की इच्छा पर नाचती हैं, लेकिन मृत्यु के समय मन प्राण चेतना के वश में चला जाता है। शरीर छोड़ते समय ही चेतना यह निश्चित करती है कि अगला जनम किस स्थिति में होगा। जैसे व्यक्ति रात में सोने पर सुबह स्वयं को स्वस्थ महसूस करता है, उसी मृत्यु एक प्रकार महा निद्रा है। इस महा निद्रा के बाद जीव अपनी नई शक्तियों को प्राप्त करता है।
क्या मृत्यु के बाद मनुष्य का अस्तित्व समाप्त हो जाता है?
आत्मा की अनंत यात्रा और पुनर्जन्म
"क्या मृत्यु के बाद जीवन खत्म हो जाता है? या आत्मा का सफर जारी रहता है? आइए जानते हैं आत्मा की अमरता, कर्मों की भूमिका और आत्मा की अनंत यात्रा को समझने की कोशिश।
डा. हीकल्स के अनुसार, भ्रूण विज्ञान में 'ऑन्टोजेनी रिपीट्स फायलोजेनी' सिद्धांत आत्मा की यात्रा को समझने में मदद करता है। यह सिद्धांत बताता है कि जीवन के शुरुआती चरणों में जीव उन सभी योनियों से गुजरता है, जिनमें वह पहले रह चुका है अर्थात चेतना के गर्भ में एक बीज कोष में आने से लेकर पूरा बालक बनने तक, सृष्टि में जितनी भी योनियां आती हैं,उन सब की पुनरावृत्ति होती है। इसे ऐसे समझते हैं, कि पुरुष का स्पर्म - स्त्री के ओवम में 1से 2, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16,16 से 32, इस तरह कोषों में विभाजित होकर शरीर बनता है और गर्भ धारण की अवधि एक माह दस दिन के लगभग मानी जाती है। अगर कोष का तीन सेकिंड से कम में विभिन्न आकृतियों में अन्तर आता है, तो उस समय के सेकिंड के अनुसार 84 लाख योनियों का एक एक छाया चित्र ही होता है, जिसमें वह रहकर आ चुका है और कहते हैं कि इस शरीर को छोड़ने के बाद भी उसे वो सभी और इस जन्म के सभी कर्म भी उसे छाया चित्र की तरह से दिखाया जाता है। शरीर की नश्वरता, आत्मा की अमरता, कर्मफल का होना और परलोक या पुनर्जन्म। ये चारों सिद्धांत सुनिश्चित हैं। 84 लाख योनियों का छाया चित्र शरीर के निर्माण के दौरान और मरने के बाद भी देखा जा सकता है।
यह प्रक्रिया आत्मा की अनंतता और पुनर्जन्म के सिद्धांत को प्रमाणित करती है। इसलिए मरने के बाद भी जीवन किसी ना किसी रूप में बना ही रहता है।शास्त्रों के अनुसार, शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है। आत्मा अपने कर्मों और इच्छाओं के आधार पर नया जीवन धारण करती है।गीता और अन्य शास्त्र बताते हैं कि आत्मा के अगले जीवन की दिशा उसके कर्म तय करते हैं। इसलिए, अच्छे कर्म करना अनिवार्य है।
आत्मा की यात्रा अनंत है। मृत्यु के बाद आत्मा का सफर रुकता नहीं है, बल्कि एक नए रूप में आगे बढ़ता है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, बल्कि आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है। हमारे कर्म, इच्छाएं, और सोच इस यात्रा को दिशा देते हैं। इसलिए, अच्छे कर्म करें और सकारात्मक सोचें क्योंकि वही आपके अगले जीवन को दिशा देंगे।"
अभी हमारा समय है, स्वास्थ्य के लिए नई जानकारी लेने का। तो बीना जी आज़ आप हमें क्या सिखाने वाली हैं।
योग और मुद्रा जीवन जीने का विज्ञान है। यह दैनिक जीवन के लिए आवश्यक है और सभी उम्र के लोगों के लिए लाभकारी है। योग का अभ्यास करके आप खुद को तनाव और अन्य बीमारियों से बचा सकते हैं, जिससे आपका जीवन अधिक सकारात्मक और खुशहाल बन सकता है।
ताम्रचूड़ मुद्रा (Tamrachood Mudra)
ताम्रचूड़ मुद्रा एक विशेष योग मुद्रा है, जिसका उपयोग मानसिक शांति, आत्मसंतुलन और ऊर्जा को शिखर तक पहुंचाने का प्रतीक है।इस मुद्रा का प्रयोग- मुर्गा, बगुला, कौआ, ऊंट, बछड़ा, कलम (पेन) चीजों को दर्शाने के लिए किया जाता है।
सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में आराम से बैठ जाएं। रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। अपने दोनों हाथों को सामने लाएं। तर्जनी उंगली (अंगूठे के बगल वाली उंगली) को थोड़ा मोड़ें। दाहिने हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) और मध्यमा (मिडल फिंगर) पर रखें। बाएं हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और अंगूठे को दाएं हाथ की छोटी उंगली और तर्जनी के बीच रखें। सांस पर ध्यान केंद्रित करें: धीमी और गहरी सांसें लें।
ध्यान केंद्रित करते हुए ऊर्जा का प्रवाह महसूस करें। इस मुद्रा को 10-15 मिनट तक करें। इसे सुबह के समय करना सबसे अधिक लाभकारी होता है। मानसिक शांति: ध्यान में सहायता: ऊर्जा संतुलन: आध्यात्मिक विकास: यह मुद्रा आत्म-जागृति, स्वास्थ्य में सुधार और आध्यात्मिक अनुभव को प्रोत्साहित करती है।
इस मुद्रा को खाली पेट या भोजन के बाद कम से कम 3 घंटे के अंतराल पर करें। यदि हाथों या उंगलियों में दर्द हो, तो इस मुद्रा को अधिक समय तक न करें। इस मुद्रा को करते समय मंत्र जाप, ध्यान या'ॐ' का उच्चारण कर सकते हैं।
ताम्रचूड़ मुद्रा को अपनी दिनचर्या में शामिल कर जीवन को सुधार सकते हैं।
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