कैसे संभव है सृष्टि की रचना?

 AWGP- Gurudev Literature : आपको हवा दिखाई देती है, बिजली (electricity) या internet दिखाई देता है। नहीं। लेकिन इनके स्पर्श और कार्यों को महसूस किया जा सकता है।बीज से पौधे और पौधे से बीज बनता दिखाई नहीं देता। जन्म से वृद्धावस्था का परिवर्तन महसूस होता है। 

लेकिन किसी यन्त्र से नापना या देखना मुश्किल है। लेकिन इनके अंदर जो चेतना या शक्ति काम कर रही है वह सत्य है।



 प्रकृति का नियम सत्य है, जैसे जन्म,बालक, युवा फिर वृद्धावस्था। ऐसा नहीं होता कि वृद्धावस्था, युवा फिर बालक। इसी प्रकार गेहूं के बीज से गेहूं और आम से आम का पेड़ ही होगा।हाथी का बच्चा हाथी और शेर का बच्चा शेर होगा।ग्रह, नक्षत्र हों या प्रकृति और चेतना या शरीर सभी अपने नियम से कार्य करते हैं। एक दूसरे का सहयोग करते हैं। इनकी सुक्ष्म शक्तियां इनके स्थूल रूप से अधिक विशाल हैं। सबसे अहम् बात है कि इनके हर कार्य में एक विशाल उद्देश्य रहता है।

एक भला व्यक्ति किसी चोर, बेईमान की सहायता नहीं करता उसी तरह ईश्वर या उसकी चेतना लालच या तृष्णा को पूरा नहीं करता। जो देता है वही ईश्वर के अनुदान वरदान लेता है। जैसे श्री कृष्ण ने पहले सुदामा से चांवल लिए, फिर संसार का वैभव दिया था। भेड़ अपनी ऊन परोपकार के लिए देती है तो उसे हर बार नई ऊन मिलती है।रीछ अपना एक बाल भी नहीं देता तो बदले में एक भी नया बाल नहीं मिलता है। 

हमें भी अपनी पात्रता को बढ़ाना चाहिए। आदर्श और उदार बनना है। संकीर्ण स्वार्थता जैसी सुरसा के मुंह में से निकले बिना कोई भी हनुमान राम काज करने में समर्थ नहीं है। 

संसार को ही नहीं ईश्वर को भी खुश रखना चाहिए।शरीर को ही नहीं आत्मा को भी सुखी रखना चाहिए। घर के अन्य सदस्यों की तरह से ईश्वर को भी अपने घर का एक सदस्य मानकर उसके लिए भी सेवा, सहायता, उदारता, सहानुभूति और अनुशासन करना चाहिए।

आखिर क्या है सेवा सहायता?

श्रेष्ठ कार्य, सेवा, सहायता देखने में घाटे का काम लगता है लेकिन करने वाले के मन में संतोष और प्रसन्नता रहती है। वह परमात्मा जो हमारे अन्त:करण में रहता है वह आदेश देता रहता है कि क्या सही है और करने लायक है और क्या नहीं करना है।

उस आदेश को नहीं मानने पर आत्मा परेशान और दुखी होती है और मानने पर ख़ुश और प्रसन्न होकर परमात्मा को महसूस करती है। परमात्मा भी ऐसी ही आत्मा के वश में रहता और वरदान देता है। जैसे जमीन एक जैसी दिखने पर भी जानकार ही जमीन की विशेषता के आधार पर अलग-अलग तरीके से उपयोगी बनाते हैं उसी तरह से आत्मा के गुणों को बढ़ाना चाहिए। क्योंकि हर जीव आत्मा में बैठा हुआ भगवान हमारे भाव, विचार और कार्यों पर नजर रखता है और परीक्षा लेता है। 

फिर अपनी सब बागडोर प्रभु के हाथों में सौंप कर उसकी इच्छानुसार संसार के महाभारत में लड़ने वाले अर्जुन विरले ही होते हैं। जब महाभारत का युद्ध होने वाला था तो श्री कृष्ण जी के पास अर्जुन और दुर्योधन दोनों पहुंचे। दुर्योधन ने श्री कृष्ण से विशाल सेना मांगी और अर्जुन को नि: शस्त्र कृष्ण मिले।

 लेकिन भगवान श्री कृष्ण के आगे विशाल सेना सहित सभी कौरवों का नाश हो गया और पांडवों को विजय मिली। इसलिए कहते हैं कि हर सांस से यही आवाज निकलती रहे कि - हे ईश्वर!तेरी इच्छा पूर्ण हो, ईश्वर! तेरी इच्छा पूर्ण हो। तेरी इच्छा पूर्ण हो। यही जीवन का मूल मंत्र हो। फिर अच्छे कार्यों के परिणाम भी सुखद और अच्छे होते हैं। यही सतयुग है बुरे कामों का बुरा नतीजा होगा तो वह कलयुग है।


किन कार्यों को करने से मन को मिलता है संतोष और क्या है रामबाण औषधि?

क्या है मन की रामबाण औषधि?

मनुष्य शरीर का केन्द्र बिन्दु अन्त:करण है वह जितना महत्वपूर्ण है उतना ही अद्भुत है। अर्थात उसमें थोड़ा सा परिवर्तन होने पर मनुष्य का सारा स्वरूप ही बदल जाता है। दूसरी ओर भावनाओं और संवेदनाओं में सहज सरल होने पर भी अपने आपको बदलने में कठोर है।

 जबकि यह ऋद्धि सिद्धियों के खजाने से भरा हुआ है। इसलिए अन्त:करण को शुद्ध करने के लिए आस्था और उपासना इसकी रामबाण औषधि है।इसी प्रकार यह सृष्टि भी अद्भुत है। जैसे बीज में कोई पेड़ दिखाई नहीं देता है। परन्तु जब वही बीज मिट्टी में दबा देते हैं तो बड़ा पेड़ बन जाता है परन्तु बीज नष्ट हो जाता है और फलों में फिर से आ जाता है। 

नास्तिक व्यक्तियों को पतन से बचाने में परमात्मा की शक्ति ही काम कर सकती है। क्योंकि जीवन के आदर्श, नीति, सदाचार, त्याग, बलिदान आदि का सीधा संबंध अन्तरात्मा से है। ईश्वर दिखाई नहीं देता है इसलिए मानना नहीं चाहिए,यह ग़लत है। जैसे अंधे को दिखाई नहीं देने पर भी वस्तु का अस्तित्व बना रहता है। इसलिए आस्तिकता ही मानव जीवन की आधारशिला है।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-AWGP- GURUDEV LITERATURE

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