क्या महत्व है तीर्थयात्रा करने का?

एक बार दीनबंधु एण्ड्रूज ने महामना मालवीय जी से भारत में फैले हुए तीर्थस्थलों के बारे में जानना चाहा तो महामना मालवीय जी ने कहा कि हिंदू धर्म अनेक संस्कृतियों का संगम है। अलग-अलग मतों के अनुसार अनेकों तीर्थस्थल हैं। जैसे- चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, सप्त पुरियां, पंच काशी, पंच सरोवर आदि। हर संप्रदायों के अपने मठ, देवालय,स्मारक आदि हैं। 



क्योंकि इनसे सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। धर्म संस्थान दो प्रकार के होते हैं- स्थानीय, क्षेत्रीय और दूसरे व्यापक, बहुउद्देशीय। क्षेत्रीय को देवालय और व्यापक को तीर्थ कहते हैं। जैसे बच्चों को प्रतीकों के माध्यम से अक्षर ज्ञान कराया जाता है उसी प्रकार धर्म और अध्यात्म के रहस्यों को जानने के लिए प्रतीकों की स्थापना देवालयों में करी जाती है। ईश्वर एक ही है परन्तु अपनी मानसिक और भावनात्मकता के आधार पर अलग अलग दिखाई देता है। इसलिए कहते भी हैं कि

जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।‌।

जैसे प्रकृति में बादल, पवन, सूर्य, चन्द्रमा आदि देवता के रूप में अपने स्थान से दूसरे स्थान पर जा जाकर दूसरों को देते रहते हैं उसी प्रकार वानप्रस्थ और सन्यासी घूम घूमकर जन जागरण करते हैं और सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाते हैं। साथ में काय चिकित्सा, मानसिक चिकित्सा, शुभकामनाएं और उपयोगी परामर्श भी करते हैं। तीर्थ सेवन से काया कल्प का लाभ मिलता है।



क्या है सनातन सत्य?

भारतीय संस्कृति कहती है कि अमरता पर विश्वास करें। अनंत जीवन जीने की तैयारी करें ‌इसीलिए देवसंस्कृति में सभी सोलहा संस्कारों में जीवित और मृतकों के भी जन्मदिन मनाए जाते हैं। मरणोपरांत भी जीवन के महत्व पर जोर दिया जाता है। जिससे व्यक्ति जीवन को श्रेष्ठ बना सकता है। एक बार सभी देवताओं में चर्चा हुई कि जीवन क्या है? इस पर बादल ने कहा कि जीवन एक घुटन भर है। चंद्रमा ने कहा कि आंख-मिचौनी है।पवन ने दिशाहीन निरूद्वेश्य भटकन है। नदी ने सतत् प्रवाह बताया।सरोवर ने मर्यादा का बन्धन। अंकूर बोला कि अभिनव अवतरण है। इस तरह से सभी ने अपने अंदाज में कहा लेकिन मृत्यु ने कहा कि यह भी एक वरदान है। सनातन सत्य है। एक सहज प्रक्रिया है। जीवन एक अनंत प्रवाह है।इसी आधार पर हमारे शास्त्र पुराण कर्म योग की शिक्षा देते हैं। कर्म की गति को समझाते हैं। क्योंकि कर्म के नियम से सभी बंधे हुए हैं चाहे वो देव हों या दानव, ऋषि हों या मानव, राजा हों या रंक। एक बार पिछले और अगले जन्मों की चर्चा चल रही थी। एक ने कहा कि तीन जन्मों का हाल तो मैं भी बता सकता हूं। पिछले जन्मों में कुछ किया नहीं तो इस जन्म में कुछ मिला नहीं और इस जन्म में कुछ कर नहीं रहे हैं सो अगले जन्म में भी कुछ मिलने वाला है नहीं। तब एक सन्त ने कहा कि अभी भी संभल जाओ तो अगला जन्म सुधार सकते हो। श्रद्धा युक्त आचरण करो और लोकहित हेतु अपना पसीना बहाए। 



संस्कार परम्पराएं सही होने पर भी वहां इतनी कुरीतियां क्यों हैं?

अनेक परमपराएं समय के लिए लाभदायक होती हैं लेकिन बाद में उनकी कोई आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन उन्हें लगातार करते रहने से वो कुरीतियां बन जाती हैं। इसलिए समय-समय पर व्यवस्था को बदलना और सुधारना पड़ता है। जैसे पर्दा प्रथा, सति प्रथा,बाल विवाह, अवज्ञा आंदोलन आदि उस समय के अनुसार सही थे लेकिन आज उनकी आवश्यकता नहीं है। एक बार एक सर्प नारद जी का शिष्य बन गया। गुरु दक्षिणा में किसी को भी नहीं काटने की प्रतिज्ञा करा ली।अब सभी ने उस सर्प को घायल करना शुरू कर दिया। फिर नारद जी आए तो उसका हाल देखा। तब फिर सलाह दी कि काटो मत लेकिन फुफकारना चालू रखो।सलाह मानी, रवैया बदला और संकट भी दूर हो गया। इसी प्रकार जब कैकेयी के द्वारा मांगे गए वरदानों से परिवार और राज्य में कलह और तनाव हो गया तो भरत ने उन वरदानों में संशोधन किया और राज्य पुनः राम को वापस कर दिया। आज का समय भी एक परिवर्तन की बेला है। 

दस अवतारों में यह दसवां अवतार कल्कि अवतार अर्थात निष्कलंक अवतार है।जो मनों में आए हुए नकारात्मक भावनाओं को हटाकर भाव, संवेदनाओं, सद्बुद्धि को बढ़ाने का काम तेजी से होगा। इसमें गायत्री मंत्र तेजी से अपना प्रभाव दिखाएगा। जैसे प्राचीन काल में तीन भाई बहुत बड़े दैत्य थे। तीनों की पुरी अलग-अलग थी और उन्होंने पूरे विश्व का वैभव अपने पास इक्कठा कर लिया था। 

वरदान था कि तीनों को एक साथ ही मारा जा सकता है। भगवान शिव ने त्रिशूल बनाया और उन्हें एक साथ मारा।उसी प्रकार आज भी तीन असुर हैं।लोभ मोह और अहंकार। इन्हें मारने के लिए बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्रांति करनी पड़ेगी। इसे प्रज्ञा अवतार भी कहते हैं। इसमें साथ देने वालों का नाम इतिहास में उसी प्रकार अमर हो जाएगा जैसे राम, कृष्ण, बुद्ध का साथ देने वालों का हो गया था या स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वालों का नाम अमर हो गया है। आज आवश्यकता है कि हम सभी मिलकर समय के अनुसार समाज में फैली हुई कुरीतियों को समाप्त करने में मदद करें।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-AWGP- GURUDEV LITERATURE

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