पितर, देवताओं से अलग परन्तु सामान्य मनुष्यों से श्रेष्ठ होते हैं। इसलिए पितरों को श्रद्धा दें।उन पर विश्वास करें। और पितरों से मार्गदर्शन, सहयोग और सहायता करने के भी दो ही तरीके हैं- श्रद्धा और विश्वास। जैसे हर एक कार्य के लिए अलग देवता हैं उसी प्रकार पितरों के कार्य बंटे हुए हैं। जैसे प्रत्यक्ष मार्गदर्शन, गूढ़ संकेत, दिव्य प्रेरणाएं, आकस्मिक सहायता आदि।
अत्यधिक दृढ़ संकल्प वाली आत्माएं अपनी जीवात्मा का एक अंश लेकर अन्य जन्म लेने के बाद भी अपनी सत्ता बनाए रखकर पितरों के रुप में अपना परिचय देती हैं। जीवधारी मनुष्य के लिए वे हजारों वर्षों तक अपना परिचय देते हैं परन्तु उनके लिए वह समय थोडा ही होता है। कहानी से बताती हूं। राजा पदम की पत्नी लीला राजा को बहुत प्यार करती थी। राजा की मृत्यु सोचकर डर जाती थी।
उसने मां सरस्वती जी की उपासना करी और वरदान प्राप्त किया कि राजा मृत्यु के बाद भी मेरे साथ इसी महल में रहेंगे। राजा की मृत्यु हो गई,तब लीला ने मां सरस्वती जी का ध्यान किया तो मां सरस्वती जी ने कहा कि राजा की चेतना यहीं पर है लेकिन जिस जिस सृष्टि में हैं उसमें भावनात्मक रूप से तुम्हें भी जाना पड़ेगा।जब लीला अपनी भाव सृष्टि में गई तो देखा कि राजा 16 वर्ष के होकर किसी बड़े साम्राज्य पर राज्य कर रहे हैं। उन्हें आश्चर्य हुआ।तब मां सरस्वती जी ने समझाया कि जैसे केले के तने के अंदर एक के एक अनेक परतें होती हैं उसी प्रकार एक सृष्टि के अंदर अनेकों सृष्टि होती हैं और उनके अनन्त परमाणुओं के अंदर अनन्त जीव और उनका जगत होता है। और मां सरस्वती जी ने लीला को पलभर में अनेकों सृष्टियों को दिखा दिया। जिससे लीला भी उस रहस्यमई दुनिया को देखकर आश्चर्यचकित हो गई।
क्या पितरों के सम्पर्क से होता है लाभ ही लाभ
योग वाशिष्ठ के अनुसार- आत्मा न कभी जन्म लेता है और न मरता है।भ्रम वश स्वप्न की सी स्थिति का अनुभव करता है। मनोविज्ञान शास्त्री फेडरिक मायर्स के अनुसार लिमिनल सेल्फ में रहस्यों को जानने की क्षमता होती है। श्रेष्ठ भाव, विचार व इच्छा शक्ति वाले पितरों से सम्पर्क कर दूरस्थ घट रही घटनाएं, भविष्यवाणी, आत्म कल्याण के रास्ते जैसी अमूल्य जानकारियों से आगे बढ़ा जा सकता है।
इनके लिए वही आत्मीय होता है जो सन्मार्गी और सद्भावना वाला होता है। इनका कार्य क्षेत्र भी इनकी क्षमता के अनुसार सीखाया और करवाया जाता है। ऐसी अनेकों घटनाओं का वर्णन इतिहास के पन्नों में लिखा गया है, जब अदृश्य शक्तियों द्वारा संगीत, साहित्य की शिक्षा दी। अनेकों की जीवन रक्षा करी। एक बार ब्रिटिश और जर्मनी सेना के बीच में युद्ध चल रहा था। ब्रिटिश सेना में केवल 500 सैनिक ही बचे हुए थे।
ब्रिटिश के एक सिपाही ने कभी किसी होटल में सेंट जार्ज की एक तस्वीर देखी थी। जिसके नीचे लिखा हुआ था कि सेंट जार्ज इंग्लैंड की साहायता के लिए उपस्थित हों। उनकी याद आते ही सभी सैनिकों ने उन्हें साहायता के याद किया। देखते ही देखते दूसरे क्षण जर्मनी की सेना मैदान में मरी हुई थी। हमारे शास्त्रों में कितनी ही घटनाओं को बताया गया है। जैसे भरी सभा में द्रौपदी की रक्षा, भक्त प्रहलाद की रक्षा, पांडवों की सहायता,नरसी मेहता जी का सम्मान, मीरा का बचाना आदि। क्योंकि पितर,देव और ब्रह्म सत्ता सर्वत्र है। और यही कारण है कि कहा जाता है कि- मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।
जाने कैसे करते हैं सहायता पितर?
मनुष्य का शरीर चेतना शक्ति और पदार्थ से मिलकर बना है, ठीक उसी प्रकार यह ब्रह्मांड भी चेतना शक्ति और पदार्थ से मिलकर बना है। इसलिए पिण्ड और ब्रह्मांड में आपस में लेन देन चलता रहता है। पृथ्वी पर रहने वाले जीवधारियों के लिए जिस प्रकार की आवश्यकता होती है वह इस ब्रह्माण्ड के अदृश्य जगत में रहती है और लगातार मिलती भी है।
परन्तु अज्ञानता के कारण मनुष्य उस अदृश्य शक्ति को महसूस नहीं करता है।उसे पूरी तरह से लेता नहीं है। महर्षि अरविन्द ने लिखा है कि जब वे जेल में बंद थे तब उन्हें विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस की आत्मा ने उनका मार्गदर्शन किया था। इसलिए मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है। यह तो ऐसा ही है जैसे पानी से भाप और भाप से बादल और फिर पानी बन जाता है। लेकिन ऐसी उच्च आत्माएं उसी के संपर्क में आती हैं जो शुद्ध हृदय, पवित्र मन और सात्विक वृत्ति वाले होते हैं।
प्राणी दो प्रकार के होते हैं। शरीरधारी और अशरीरी। शरीरधारियों को चार भागों में बांटा गया है और उनकी संख्या चौरासी लाख योनियां हैं और अशरीरियों की संख्या 33 कोटि अर्थात तैंतीस प्रकार और स्तर या वर्ग या करोड़ मानी जाती है। सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी एक थे और जब उन्होंने स्वयं को एक से अनेक करने की सोची तब आज जो प्रकृति में दिखाई देता है, वह सब हो रहा है। और यही कारण है कि वह चेतना जडऔर चेतन सभी में है।जब इनके लिए श्रृद्धा भाव रखते हैं ,तो ये सहयोग और सहायता करते हैं। और यही कारण है कि हिन्दू धर्म में सूर्य, चन्द्रमा से लेकर नदी तालाब हो या मरघट, तलवार,कलम हो या घडा, रूपया पैसा, नाली या घूरा हो या वृक्ष, वनस्पति हों या पशु पक्षी सभी को समय-समय पर पूजा जाता है। उनके प्रति श्रृद्धा भाव बढ़ाया जाता है
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