विवाह का उद्देश्य और आवश्यकता

 विवाह का उद्देश्य क्या है। इसे या तो मनुष्य समझता नहीं है, या फिर समझना नहीं चाहता है। लेकिन विवाह का उद्देश्य है कि आपस में मिलजुल कर प्यार, सम्मान और समर्पण से रहें। पश्चिम सभ्यता में living together life को अच्छा समझा जाता है कि एक साथ अच्छे दोस्त बनकर रहें। वहीं भारतीय संस्कृति में तो शुरू से ही यही सीखाया जाता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए बने हैं। 



एक रथ के दो पहिए हैं। एक दूसरे का सम्मान करें। एक दूसरे को हर परिस्थिति में सहायक बनें। तभी वो एक अच्छी सन्तान पैदा कर सकते हैं। समाज और राष्ट्र को सुयोग्य नागरिक मिलें। योग्य संतान से पितरों को श्रेष्ठ योनि और सुख मिले। श्रेष्ठ संतान के लिए संख्या नहीं उसके गुणों का महत्व होता है। अगर पति पत्नी में झगड़ा है बच्चों की सही देखभाल नहीं कर सकते हैं। वहीं अच्छे गुणों का विकास माता पिता की सही देखभाल में ही सम्भव है। जैसे एक कुशल माली ही अपने बगीचे को घास, फूंस, पशु, पक्षी से बचाता है।

 जगह के अनुसार पौधे लगाना, समय पर खाद पानी देना, कटाई छंटाई करता है। उसी प्रकार माता पिता को भी ध्यान रखना चाहिए। बालक गीली मिट्टी के समान है। माता पिता और गुरु बच्चे को चाहे जिस ढांचे में ढाल सकते हैं। जैसे पांच पांडव और सौ कौरव द्रोणाचार्य के पास शिक्षा लेने के लिए गए।

 युधिष्ठिर एक ही पाठ को कई दिनों से याद कर रहे थे। जब गुरु द्रोणाचार्य ने पूछा कि पाठ याद क्यों नहीं हो रहा है तो युधिष्ठिर ने कहा कि "सत्यं वद" इस पाठ को मैं शब्दों में नहीं अपने जीवन में उतारने का ताना-बाना बुन रहा हूं।जब यह याद हो जाएगा तो मैं दूसरा पाठ याद करूंगा। यही कारण भी था कि युधिष्ठिर धर्मराज और पांडवों में श्रेष्ठ कहलाए।


कैसे दें सही दिशा आज की युवा पीढ़ी को?


नीचे गिरना हर वस्तु और व्यक्ति के लिए बहुत आसान है लेकिन आगे बढ़ने और ऊपर उठने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। आज व्यक्ति का चिन्तन और चरित्र दोनों गिर गए हैं। उसका असर आस पास के वातावरण पर भी पड़ता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति सही चिन्तन और चरित्र रखने की कोशिश करता भी है तब भी वह उस वातावरण की चपेट में आने से पीछे हट जाता है। जैसे एक गांव था। जहां हर दिन हर घर में यज्ञ किया जाता था। एक दिन एक परिवार में एक महिला को सुबह घर की सफाई करते समय खांसी होने लगी और थूक हवन कुंड में गिर गया। लेकिन वह थूक हवन कुंड में गिरते ही सोने में बदल गया।

अब उस स्त्री ने इसे हर रोज का नियम बना लिया। धीरे धीरे यह चर्चा पूरे गांव में फैली।अब सभी महिलाएं ऐसा करने लगी। एक सद्गृहस्थ की पत्नी ने जब यह बात अपने पति से कही तो वह व्यक्ति समझ गया कि अब इस गांव में रुकना ठीक नहीं है। उसने कल तक रुकने के लिए कहा। सुबह उठने पर उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी को चलने के लिए कहा। जैसे ही वे गांव से बाहर निकले कि पूरा गांव आग की लपेट में आकर धूं धूं करके जल गया। इसलिए भगवान बुद्ध ने पांच नियम बनाए, जिन्हें पंचशील कहा जाता है।

 सुव्यवस्था, नियमितता, सहकारिता, प्रगतिशीलता और शालिनता। इसलिए हर परिवार में एक दूसरे के विचारों को जानने और समझने का वातावरण होना चाहिए। इसके लिए स्वाध्याय करना चाहिए। जिससे मन मुटाव की स्थिति से बचा जा सकता है। इसके लिए कथा कहानियां का भी बहुत महत्व है। जैसे एक कौआ अपना घोंसला छोड़कर पूरब की ओर जाने की तैयारी कर रहा था। 

बुलबुल ने पूछा तो उसने कहा कि- यहां के लोगों को आवाज की परख नहीं है। बुलबुल ने कहा- ताऊजी, आपको अपनी आवाज सुधारनी पड़ेगी, नहीं तो आपको पूरब वालों से भी यही शिकायत होगी।कौआ समझ गया और अपने घौंसले में वापिस आ गया।इस तरह की कहानियां सभी को अच्छी लगती हैं और समझ में भी आती हैं। जो सुनता है उसके ऊपर अपना प्रभाव भी डालती हैं। इसलिए युवा पीढ़ी के साथ में बैठकर बातचीत करने का वातावरण बनाने पर ही उन्हें सही दिशा दे सकते हैं।


इस समाज को उन्नत बनाने में सभी का सहयोग किस प्रकार मिल सकता है?


चाहे परिवार हो, समाज हो या राष्ट्र। किसी एक व्यक्ति से नहीं बनता है। उसमें सभी का सहयोग बहुत ज़रूरी है। चाहे वो बच्चे हों या माता पिता या वृद्ध जन। घर में वृद्ध व्यक्तियों का विशेष स्थान होता है। उनके ज्ञान, समय और अनुभव का लाभ परिवार और समाज के लिए उपयोगी है। जीवन एक महान यात्रा है। जिस पर आगे बढ़ते हुए अल्प से महत्, तुच्छ से महान बनने वाली यात्रा है। 

इस तरह से मोह- बन्धन टूटते हैं और परमार्थ के काम बनते हैं। जिस प्रकार परिवार में सब मिलजुल कर रहते हैं। उसी तरह से सभी परिवारों को अपने मतभेद खत्म करके रहना चाहिए। क्योंकि यह समस्त संसार भगवान का है, किसी एक व्यक्ति का नहीं। पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि आने वाले दिनों में संपदा समाज की होगी धरती माता के सभी पुत्रों को विशाल मानव परिवार के सदस्य बनकर एक समान ही सम्मान और साधन मिलेंगे। एक भाषा, एक संस्कृति, एक जैसे नियम- अनुशासन, एक सेना आदि सब कुछ एक ही होगा और ऐसा होने पर मनुष्य में देवत्व जागेगा और धरती पर स्वर्ग जैसी परिस्थितियां बनेंगी। 

जैसे एक बार चिड़ियाघर के सभी जानवरों ने इक्कठे होकर नि:शस्त्रीकरण की निति अपनाने का फैसला किया।गेंडे ने कहा- सींग तो रक्षा के साधन हैं लेकिन दांत और पंजे सबसे ज्यादा खतरनाक हैं उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।भैंसा और हिरन से लेकर कांटों वाली सेई तक ने इसका समर्थन किया।शेर ने दांतों और पंजों को खाने और चलने का साधन बताया लेकिन सींग के प्रयोग को रोकने की बात कही।

बाघ, चीता,सियार जैसे अनेक जानवरों ने समर्थन किया।रीछ की बारी आई तो उसने कहा कि सींग, दांत और पंजे सभी पर रोक लगे और आवश्यकतानुसार आलिंगन करने वाले मित्रतापूर्ण तरीके को अपनाया जाए।अब सभी अपने पक्ष का समर्थन और प्रतिपक्ष का विरोध करने लगे।

शोर मचा, एक दूसरे पर गुर्राने लगे लड़ने की सोचने लगे।तभी चिड़ियाघर का मालिक आया और सबको अपने अपने बाड़े में बंद कर दिया और कहा- मूर्खों! तुम अपनी अपनी मर्यादाओं में रहो। नि: शस्त्रीकरण अपने आप हो जाएगा। इसी प्रकार ऋषि धौम्य कहते हैं कि आने वाले समय में महाकाल सारे विश्व को एक साथ करके ही रहेगा। और फिर सभी दिशाओं में यह वाणी गूंजेगी- सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित दुःखमाप्नुयात।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य-AWGP- GURUDEV LITERATURE


http://literature.awgp.org/book/pragya_puran/v5.1


https://www.youtube.com/watch?v=3GP28kuKAmY

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