जब एक लयबद्ध तरीके से और बार बार किसी वाक्य को बोला जाता है तो वह मंत्र बन जाता है। गायत्री मंत्र के लिए ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ के अनुसार जो प्राणों की रक्षा करती है वह गायत्री है। शंकराचार्य भाषा के अनुसार जिस विवेक, बुद्धि, ऋतंभरा या प्रज्ञा से वास्तविकता का ज्ञान होता है, वह गायत्री है।
गायत्री कोई देवी, देवता या काल्पनिक शक्ति नहीं है, बल्कि वह परमात्मा की इच्छाशक्ति है, जो मनुष्य में सद्बुद्धि के रूप में प्रकट होती है। अर्थात वह व्यक्ति सबके कल्याण के बारे में सोच समझकर ही कोई काम करता है। उससे उस व्यक्ति के जीवन को सार्थक और सफल बनाता है। ब्रह्मा जी का जन्म हुआ तो उन्होंने सबसे पहले यही प्रश्न करा की मैं कौन हूं और मेरा जन्म क्यों हुआ है। जैसे ही उन्हें अपने बारे में जानकारी मिली, उन्होंने गायत्री मंत्र का जप किया और वेदों की रचना करी। इसलिए गायत्री को वेद माता भी कहते हैं।
सृष्टि को बनाने वाली यह पहली शक्ति है। इसलिए इसे आदिशक्ति कहा गया। सभी देव शक्तियां इस आदिशक्ति की धाराएं हैं। इसलिए इसे देव माता कहा जाता है। सारे विश्व की उत्पत्ति इसी आदिशक्ति से हुई, इसलिए इसे विश्वमाता के नाम से भी जाना जाता है। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं, जो शरीर के 24 नाड़ी तन्त्र को जगाते हैं। एक प्रकार से गायत्री मंत्र व्यक्ति के मन में शक्तियों को आने का उचित स्थान बनाता है।
गायत्री कामधेनु गाय है, जो मनुष्य के सभी दुखों को मिटाती है। गायत्री मंत्र प्रचंड शक्ति है। इससे बड़ा और इससे ऊपर कोई मंत्र नहीं है। भारतीय संस्कृति के अनुसार गायत्री मंत्र से ही सभी मंत्र बने हैं। कहावत है “जितना गुड डालो उतना मीठा।” इसी प्रकार गायत्री मंत्र व्यक्ति की श्रद्धा और विश्वास के अनुसार फल देता है।
गायत्री मंत्र के सफल होने के लक्षण क्या हैं?
सभी मनुष्य एक समान होते हुए भी कुछ व्यक्तियों में अलग से कुछ विशेषताएं होती हैं और वो कल्याणकारी कार्यों में लगे रहते हैं। जीतने भी महापुरुष, ऋषि,ऋषिकाएं, देवी, देवता सभी ने गायत्री मंत्र जप किया है। यहां तक कि देवों के देव महादेव भी कहते हैं कि मैं निरन्तर गायत्री जप करता हूं।
अगर कोई व्यक्ति गायत्री मंत्र करता है, तो उसके स्थूल शरीर में तो कोई अंतर नहीं पड़ता। लेकिन उसके सूक्ष्म और कारण शरीर में अंदर से बदलाव आता है। जैसे - उसके शरीर से विशेष प्रकार की सुगंध आने लगती है। मन में उत्साह रहता है। शरीर में हल्का पन आता है।
स्वार्थ कम और परमार्थ ज्यादा होता है। भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही पूर्वाभास हो जाता है। स्किन सॉफ्ट हो जाती है। इस प्रकार उसके शरीर में अंतर दिखाई देता है। उस व्यक्ति को श्री, समृद्धि और सफलता मिलने लगती है। अथर्ववेद के अनुसार, गायत्री साधक को प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्राह्मतेज देने वाली बताया है। गायत्री कामधेनू है। अर्थात यह सद्गुणों की वृद्धि करने वाली है। विपरीत परिस्थितियां जब आती हैं तो चारों तरफ से आती हैं। कहावत है कि विपत्ति अकेले नहीं आती वह हमेशा अपने बाल बच्चे साथ लाती है। ऐसे समय में गायत्री व्यक्ति को परेशानियों से बचाती है और सभी शक्तियों को भी अपने साथ लेकर आती है।
गायत्री से आत्मिक कायाकल्प कैसे होता है?
विश्वास और इसके अर्थ पर चिंतन करते हुए गायत्री मंत्र जप किया जाता है तो वह आत्मा के बल को बढ़ाता है। आत्मिक उपचार होता है। इसलिए गायत्री साधना आत्मबल बढ़ाने का अचूक आध्यात्मिक उपाय है। सभी ऋद्धि सिद्धियों का केंद्र आत्मा में है। गायत्री के दो प्रतीक हैं - यज्ञोपवीत और शिखा। यज्ञोपवीत नौ गुणों से युक्त है - जीवन विज्ञान की जानकारी, शक्ति संचय की नीति, श्रेष्ठता, निर्मलता, दिव्यदृष्टि, सद्गुण, विवेक, संयम और सेवा। शिखा- प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति में शिखा अर्थात चोटी रखने का नियम रहा है।
जैसे वैज्ञानिक तकनीक में रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन आदि उपकरणों को सही से इस्तेमाल करने के लिए उनमें एक एन्टीना लगा रहता है। ठीक उसी प्रकार शिखा को मस्तिष्क की नाभि और हृदय कहा जाता है। जैसे त्रिवेणी के कारण प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं। इसमें माता गंगा और यमुना में सरस्वती का मिलन होता है। इसी प्रकार आध्यात्मिक जगत में गायत्री त्रिवेणी है। जैसे सत, चित आनंद।
सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् । धर्म,अर्थ, काम। आकाश, पाताल, पृथ्वी। जैसे अनेकों त्रिगुण इस में समाए हुए हैं। इसी प्रकार 3 दुखों को नष्ट करती है- अज्ञान, अशक्ति और अभाव। गायत्री के 24 अक्षरों का अर्थ है- ॐ- ब्रह्म, भू:- प्राण स्वरूप, भुव:- दुख: नाशक, स्व:- सुख स्वरूप, तत्- उस, सवितु:- तेजस्वी, प्रकाशवान, वरएण्यं- श्रेष्ठ, भर्गो- पाप नाशक, देवस्य- दिव्य को, देने वाले को, धीमहि - धारण करें, धियो- बुद्धि को, यो - जो,न:- हमारी, प्रचोदयात्- प्रेरित करे।
पूरा अर्थ इस प्रकार बना- उस प्राण स्वरूप,सूख स्वरूप, दुःख नाशक, श्रेष्ठ, तेजस्वी,पाप नाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने अन्तःकरण में धारण करें और वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करें। वेदों के अनुसार गायत्री के इन 24 अक्षरों के अर्थ का चिंतन और मनन करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही आत्मा का कायाकल्प है।
http://literature.awgp.org/book/Gayatri_Mantra_Ek_Mahavigyan/v1.1
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