आंदोलन की आवश्यकता क्यों होती है?

AWGP- Gurudev Literature: समय और परिस्थिति के कुछ मान्यताएं बन जाती हैं।हो सकता है कि कल उस समय की वह मान्यताएं आवश्यकता रही हों। लेकिन आज उनकी आवश्यकता है या नहीं। यह आज के समय और परिस्थिति को ध्यान में रखकर उसकी आवश्यकता को देखते हुए ही उस पर विचार करना चाहिए। अगर अब उनकी आवश्यकता नहीं है तो उनमें परिवर्तन बहुत जरूरी है और यह परिवर्तन ही आंदोलन है। 



जैसे एक घर में लडके की शादी थी। दुल्हन का स्वागत करना था। लेकिन उनके घर में जो बिल्ली थी वह परेशान कर रही थी।उसे एक टोकरी में बंद कर दिया। शादी में व्यस्त होने के कारण किसी को भी बिल्ली का ध्यान नहीं रहा। तीन दिन बाद ध्यान आया तो देखा कि बिल्ली मर गई है।उसे बाहर फेंक दिया गया।अब उस घर की यह मान्यता बन गई कि लड़के की शादी में एक बिल्ली लेकर आते, टोकरी में बंद कर देते और तीन दिन बाद उसे फेंक देते। अब कई पीढ़ियों के बाद एक नवयुवक को उत्सुकता हुई कि ऐसा क्यों किया जाता है। उसने ढूंढा तो कारण पता चला और परिवर्तन किया। 

आंदोलन समय समय पर होते रहते हैं। लेकिन आंदोलन की आवश्यकता तभी महसूस होती है, जब किसी व्यक्ति परिवार समाज राष्ट्र या विश्व में कोई भी बुराई विकृति दुर्गुण इतने व्यापक, बड़े स्तर पर फैल जाता है कि उस समय के अनुसार वह ठीक नहीं है। 

तभी आंदोलन की आवश्यकता होती है। लेकिन आंदोलन करने के लिए अपने जीवन की साधना सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए हर व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं है। महापुरुष ही क्रांति या आंदोलन करके उस समय समाज में एक बड़ा परिवर्तन करते हैं। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने तो युग परिवर्तन करने की ही सोची और अपने जीवन में सात आंदोलन चलाए। वे आंदोलन करने के 3 तरीके बताते हैं। उपासना, साधना, आराधना।

उपासना अपने इष्ट देव की करें। साधना अपने व्यक्तिगत जीवन की करें और आराधना मानव की करें। इसके लिए तीन सूत्र हैं - स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज। कहते हैं कि "prevention is better than cure." 

भ्रांतियां बनने से पहले सावधान रहना चाहिए और अगर कुछ मूढ़ मान्यताएं बन जाती हैं तो उन्हें खत्म कर देना चाहिए।


पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के द्वारा चलाए गए आंदोलन क्या थे?


पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के द्वारा चलाए गए आंदोलन इस प्रकार हैं। साधना आंदोलन, स्वास्थ्य आंदोलन, शिक्षा आंदोलन, स्वावलंबन आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन,नारी जागरण आंदोलन और व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन आंदोलन। साधना आंदोलन में सभी प्रकार के संयम अपनाने के सूत्र बताए हैं। स्वास्थ्य आंदोलन में शारीरिक, मानसिक सामाजिक स्वास्थ्य बनाए रखने हेतु आहार विहार पर ध्यान देना।जडी बूटी का सेवन करना। जल्दी सओएं- जल्दी जागें। व्यस्त रहें - मस्त रहें। जैसे सूत्र बताए हैं। 


जैसे इन सभी आंदोलनों के नाम अलग-अलग हैं। वैसे ही इनके कारण भी अलग अलग थे। कैसे?


समय और परिस्थिति के अनुसार ही आंदोलन होते हैं। पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के समय में व्यक्ति का संयम खत्म हो गया था। स्वास्थ्य बिगड़ रहा था। शिक्षा खत्म हो रही थी। संस्कार समाप्त होते जा रहे थे। वह समय ऐसा था जिसमें समाज को उन्नत करने के लिए नई दिशा देने की मांग थी। ऐसे समय में उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन एक क्रांतिकारी कदम था। जैसे कि साधना आंदोलन में व्यक्ति के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है और स्वास्थ्य आंदोलन में स्वास्थ्य पर जोर दिया गया है। इस पर इन्होंने गृह वाटिका बनाना सीखाया। इसी प्रकार शिक्षा आंदोलन में बाल संस्कार शाला, प्रोढ शिक्षा और विद्या पर बल देते हुए हर व्यक्ति को स्वावलंबन बनने के नए रास्ते बनाए। कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया। 

नारा दिया कि हर खाली हाथ को काम मिले। पर्यावरण आंदोलन में आज के "उपयोग करो और फेंकों" use and throw  जैसे सामान, ध्वनि प्रदुषण को बंद करने और वृक्षारोपण व यज्ञ करने की आवश्यकता बताई है। अपने जन्मदिन और विवाह दिवस पर वृक्षारोपण पर जोर दिया है। घर में namo यज्ञ हर रोज करने का तरीका बताया है ‌ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि एक सुसंस्कृत परिवार की धुरी है - प्रगतिशील व सुसंस्कृत नारी। इसके लिए नारी जागरण आंदोलन चलाया। व्यसन मुक्ति के लिए कहा है कि "साधनों को व्यसन से बचाएं और सृजन में लगाएं। और मृतक भोज, बड़ी दावतें, दहेज, पर्दा प्रथा जैसी अनेकों कुरीतियों के प्रति भी आंदोलन चलाए। उनके द्वारा चलाए गए सभी आंदोलन उनके शिष्य आज भी समाज में चला रहे हैं। कहते हैं कि साइकिल का पहिया घुमता है। पहले ऊपर फिर नीचे जाकर ऊपर आ जाता है।उसी प्रकार ये सभी आंदोलन सफल हो सकते हैं जब व्यक्ति स्वयं को साध लेगा। कहने का अर्थ है कि साधना आंदोलन ही हर एक आंदोलन की धुरी है।

http://literature.awgp.org/book/Hamare_Saat_Andolan/v1.9


https://www.youtube.com/watch?v=CUi_uQqYhog

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