अनुशासन किसे कहते हैं ? और क्या है अनुशासन?

 शासन का अर्थ है किसी और का अधिकार होना और अनुशासन का अर्थ है कि स्वयं का अपने ऊपर शासन होना। एक व्यक्ति से परिवार, और परिवार से समाज बनता है। जब व्यक्ति का अपने ऊपर अपना शासन होता है तो अनुशासन को सामाजिक गुण बन जाता है। सभी अनुशासन का पालन को कहते हैं और सभी को उनका पालन करना चाहिए। जैसे सैनिक अनुशासन में रहकर एकता से काम करते हैं। 



मनुष्य को स्वतंत्रता मिली है कि वह अच्छा बुरा कुछ भी कर सकते हैं। संस्कृति व सभ्यता एक दूसरे पर निर्भर हैं। संस्कृति आत्म निर्भर होती है। लेकिन सभ्यता एक दूसरे से मिलकर बनती है। जहां यथार्थता और गंभीरता होती है, वहां स्थिरता होती है। यह बताता है कि किसी को भी ऊंचा उठना हो तो पहले अपनी जड़ें मजबूत बनाएं। क्योंकि अनुकूलतायें और प्रतिकूलतायें जीवन में हमेशा आती जाती रहती हैं। 

जैसे अब्राहम लिंकन को महापुरुषों के जीवन पढ़ने का बहुत शौक था।गरीबी के पुस्तकें इधर-उधर से लेकर पढ़ते थे। एक बार पुस्तक लाये और वह भीग गई। लौटाने पर झंझट हुआ तो उन्होंने उस पुस्तक के मुल्य के बराबर उस व्यक्ति के यहां काम किया और पैसे चूका कर वापस लौटे। यह उनके अपने अनुशासन से ही सम्भव हुआ।


मनुष्य शरीर में रहते हुए देवताओं जैसा आनन्द कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

देवता का अर्थ है कि हमेशा देते रहना और देने में ही आनन्द महसूस होता है। लेकिन मनुष्य के अन्दर स्वार्थ और परमार्थ दोनों ही तरह के स्वभाव होते हैं। अब यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर है कि वह किसे बढ़ाता है।अगर परमार्थ को बढ़ाएगा तो देने की आदत बन जाएगी और यही उसका धर्म बन जाएगा। धर्म का अर्थ है कि वह कार्य जो सभी की भलाई के लिए किया जाता है। सज्जनता, कर्तव्यनिष्ठा, विनम्रता, स्नेह, सद्भावना आदि गुण सुनने में सरल हैं लेकिन इनकी परिभाषा सरल नहीं है। 

धर्म की सीमा असीम है। लेकिन इसकी शुरुआत सज्जनता से होती है और ऐसे व्यक्ति पाप से घृणा करते हैं, पापी से नहीं। जैसे डॉक्टर रोग को मारता है और रोगी को बचाता है।एक बार मंद वायु, आंधी से बोली, दीदी मैं जहां जाती हूं लोग स्वागत करते हैं और आपसे लोग डरते हैं। आप ऐसे परेशान क्यों करती हैं। तो आंधी ने कहा, बहन तुम अपनी जगह ठीक हो और मैं अपनी जगह। तुम लोगों को तसल्ली देती हो लेकिन मैं जिस जगह सडन या जहरीला धुआं और घुटन पैदा करने वाले विकार होते हैं, उन्हें साफ करती हूं। 

लोग मंगल के लिए दोनों की आवश्यकता है। तुम्हारा सौजन्य भी और मेरा पराक्रम भी। जैसे कहा भी गया है कि एक हाथ में भाला और दूसरे हाथ में गीता होनी चाहिए। मनुष्य का अपना व्यवहार एक तरह से फेंकी हुई गेंद की तरह है।जो सामने से टकराकर वापस आती है। इसलिए जैसा व्यवहार दूसरे के साथ करते हैं, वैसा ही उस व्यक्ति के पास आता है। सेवा के बदले सेवा आती है और अपमान के बदले अपमान आता है। 

इसलिए पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि यदि लगन सच्ची हो, संकल्प बल दृढ़ हो और श्रम करते रहने पर भी धैर्य रखने का गुण हो, तो मनुष्य को सफलता मिलकर ही रहती है।जो व्यक्ति योजना बनाकर काम करते हैं, उन्हें सफलता मिलती है, उनकी बुद्धि बढ़ती है और सबसे अहम बात यह कि वे बुराईयों से बचे रहते हैं। जैसे एक व्यक्ति ने एक भूत को सिद्ध किया।शर्त यह थी कि उससे हर समय काम लिया जाएगा और काम नहीं मिलने पर वह हमला करेगा।काम दिया गया और तीन चार दिन में सारे काम पूरे हो गए। 

अब नया काम कहां से लाएं।आंगन में एक खंभा गाढ़ दिया और भूत को खाली समय में उस पर चढ़ने उतरने के काम में लगा दिया। समस्या का समाधान हो गया। कहावत भी है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए अपने मन और दिमाग को हमेशा अच्छे कार्य में और गुणों को बढ़ाने में लगाना चाहिए। इससे ही हमेशा आनंद की अनुभूति होती है।


सहयोग, सहकार और परमार्थ एक दूसरे से किस प्रकार जुड़े हुए हैं?


कहते हैं कोई भी काम अकेले नहीं होता है। कोई भी रोग, दुःख और सुख अकेले नहीं आता है। कोई भी सफलता अकेले नहीं मिलती है। इसलिए cooperation, charitable, help करने के लिए भी आपको साथ की जरूरत है क्योंकि किसी help आप तभी कर सकते हैं जब आप परमार्थ का भाव रखते हैं। 

स्वामी रामतीर्थ वसुदेव कुटुंबकम की व्याख्या करते हुए कहते हैं की हाथ का कमाल इसी में है कि वह अपना हित समस्त शरीर के हित में जुड़ा हुआ रखे। यदि हाथ पूरे शरीर के साथ मिलकर काम नहीं करेगा, तो वह स्वयं भी बेकार होगा और पूरे शरीर को भी बेकार करेगा। इसी प्रकार संपूर्ण जगत एक शरीर है और व्यक्ति उसका छोटा अंग अवयव है। व्यक्ति की भलाई सभी से जुड़कर रहने में ही है क्योंकि संसार के सभी जीव समूह में रहकर सहकार का जीवन जीते हैं। 

जैसे प्रिंस क्रोपाटिन ने लोमड़ियों की घटना का वर्णन किया कि एक बार जंगल में रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। मजदूर अपना खाना रखकर काम करते और आकर देखते कि उनका खाना गायब है। आप खाना एक ऊंचे खंबे पर रखा गया। वहां से भी गायब हुआ। 

इसी तरह से ऊंचाई बढ़ती गई। लेकिन खाना गायब होता रहा। एक दिन लोगों ने देखा कि सभी लोमड़ियां सर्कस की तरह एक के ऊपर एक चढ़ती गईं और उस ऊंचाई पर पहुंचकर खाने को नीचे गिरा दिया और उठाकर भाग गईं। यह उनके सहयोग का ही परिणाम था। शरीर चक्र, जल चक्र, प्रकृति चक्र सभी सहयोग सहकार की नीति पर चलते हैं। जैसे एक बूंद पानी का कोई मतलब नहीं है लेकिन नदी के साथ मिलकर वह सागर बन जाती है। यहां तक कि हमारी दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताएं भी सभी के सहयोग सहकार और परमार्थ से ही सम्भव होता है।

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